Thursday, December 23, 2010

खोदा पहाड़ निकली चुहिया

हमारे यहाँ  बिना क्रम टूटे लगातार माननीयों द्वारा घोटाले पर घोटाले होते रहते हैं। इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है कि ज्यादा समय न निकल जाये और कोई घोटाला या कांड या कुछ भ्रष्ट टाइप का न हो.... और कभी कभार तो चौका या छक्का भी लगा देते हैं ये लाल नीली बत्ती वाले।



इस बार भी कुछ वैसा ही हुआ है. यूपीए 2 में तो कमाल ही हो गया। हालाँकि "पार्टी विद ए डिफ़रेंस" कहने वाले भी तहखाने में मिलेंगे।इन घोटालों पर इन्ही माननीयों द्वारा ही तुरत फुरत ही जाँच कमेटियां (उच्चस्तरीय) भी बन जाती है और फिर तो बस खेल ख़त्म पैसा हजम। 


अव्वल तो इन कमेटियों की कहानी जगजाहिर है फिर भी जाँच कमेटी अपना काम करेगी जो कभी ख़त्म होगा नहीं और घोटालेबाज अपना काम जारी रखेंगे (जनहित में)। यदि किसी जाँच समिति का कोई परिणाम आ भी आ गया तो क्या होगा -- जी हाँ "खोदा पहाड़ निकली चुहिया"

खैर छोडिये.... इन सब पर एक शानदार शेर याद आ रहा है जो हमारे व्यक्तिगत ईमानदार प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने 'युवा' तेज तर्रार नेता श्री लाल कृष्ण आडवाणी पर कटाक्ष करते हुए संसद भवन में दे मारा था।

पेश है गौर फरमाएयेगा --- 
न खंजर चलेंगे न तलवार उठेगी,
ये बाजू मेरे आजमाए हुए हैं।

Saturday, December 18, 2010

वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी

लगभग आधी रात हो रही है और इस वक़्त सुदर्शन फ़ाकिर साहब का एक गीत याद आ रहा है --- वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी ! फ़ाकिर साहब वो थे जिन्होंने जगजीत सिंह को जगजीत सिंह बनाया !
खैर   फिलहाल तो ये गीत पेश है -- आनंद लीजिये 


 ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ।
मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्‍ती वो बारिश का पानी ।।

मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी,
वो नानी की बातों में परियों का डेरा,
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा,
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,

दीप


"दीप प्रज्ज्वलित जब होता है,
                    अन्धकार चहुँ दिश मिटता है !
 मन का दीपक तब जलता है,
                    जीवन उज्जवल हो उठता है !!"