Tuesday, September 27, 2016

फ्री की आदत वाले हम भारतीय : भाग 1

ऑफिस से घर पहुंचकर चाय पीते हुए टीवी पर नजर गड़ाये अपनी थकान उतार रहा था कि तभी दिल्ली-एनसीआर के गाज़ियाबाद की एक ख़बर आती है । समाचार हम भारतीयों की कुछ भी फ्री पाने की आदत का महिमामंडन कर रहा था। अभी कुछ दिन पहले ही रिलायंस द्वारा जियो मोबाइल सिम जारी करने की घोषणा के बाद से मैंने वी3एस मॉल के कैंपस में जियो सिम पाने के लिए सुबह के 9:30 बजे ही सैकड़ों लड़के-लड़कियों की लंबी-लंबी कतारें कई-कई दिन तक लगी देखी थीं। लेकिन जियो की दीवानगी इस हद तक चली जाएगी सोचा न था।

समाचार कुछ यूँ था कि ग़ाज़ियाबाद में कुछ लोग एक रक्तदान शिविर का आयोजन करते हैं। रक्तदान के लिए लोगों की लंबी-लंबी कतारें लगी हुई हैं, इसमें युवा, बड़े, बुजुर्ग, महिलाएं यहाँ तक कि 70-80 साल के बुजुर्ग लाइनों में खड़े होकर अपना रक्त देने आये हुए थे। ये समाचार और ये नज़ारा सच में हैरान करने वाला था। इससे पहले रक्तदान को लेकर इतना उत्साह और जागरूकता मैंने पहले कभी नहीं देखी। मैंने स्वयं कई बार रक्तदान किया है, सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते अनेक रक्तदान शिविरों में गया हूँ और वहां बखूबी देखा है कि कई बार तो ऐसा होता है कि जितने यूनिट रक्तदान का लक्ष्य लिया गया उसे पूरा करने में  आयोजकों को काफ़ी पसीना बहाना पड़ता है।

बहरहाल मैं हैरान था इसलिए खबर में थोड़ी दिलचस्पी और बढ़ गई और तभी पता लगा कि इस शिविर में रक्तदान करने वाले हर आदमी को जियो की एक सिम फ्री यानि निःशुल्क दी जा रही थी।  इतना सुनने के बाद फिर सारा माजरा और उन लंबी लाइनों की वजह समझते देर नहीं लगी। रिपोर्टर को बाइट अर्थात बयान देते हुए लोग यही कह रहे थे कि 'नहीं जी हम तो रक्तदान के लिए आये हैं अब जियो सिम मिल रही है तो ये तो अतिरिक्त लाभ है।'  एक साहब ने कहा कि मेरे पास तो पहले से दो जियो की सिम है, रक्तदान अपनी सेहत के लिए अच्छा होता है मैं तो इसलिए यहाँ आया हूँ। लगभग सभी लोग कमोबेश कुछ ऐसा ही कह रहे थे। हाँ उन सबमें यदि एक बात कॉमन यानि समान थी तो वो ये कि उनमें से ज्यादातर पहली बार खून देने आये थे।  अब इसका क्या निहितार्थ है ये हम सभी आसानी से समझ सकते हैं।

Sunday, September 25, 2016

Arab Spring - अरब स्प्रिंग, ये कैसा 'स्प्रिंग'

मौत का सन्नाटा  
अगर हमारे गली मोहल्ले, अड़ोस-पड़ोस में किसी घर में किसी की मौत हो जाती है तो कई दिन तक पूरे मोहल्ले में सन्नाटा छाया रहता है। अब इसी तरह सीरिया, इराक तथा मध्य पूर्व के अन्य देशों के बारे में सोचें जहाँ रोज हजारों की संख्या में मौतें हो रही हैं। लोगों की आँखों में आंसू सूख चुके हैं लेकिन मौत का तांडव पिछले लगभग पांच साल से जारी है।

'अरब स्प्रिंग' - मौतें, मौतें और सिर्फ मौतें
'अरब स्प्रिंग' या 'अरब वसंत' के नाम से इन देशों में एक के बाद एक जो आंदोलन शुरू और विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे वो कहीं-कहीं तो वसंत का एहसास दे गए लेकिन बाकी जगह अगर कुछ मिला है तो सिर्फ और सिर्फ हिंसा, भुखमरी, बेरोजगारी, मौत और पलायन। 2010 में ट्यूनीशिया से शुरू हुआ अरब स्प्रिंग, अरब जाग्रति या अरब विद्रोह धीरे-धीरे अल्जीरिया, मिस्र, जॉर्डन और यमन पहुँची जो शीघ्र ही पूरे अरब लीग एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में फैल गई।  इन विरोध प्रदर्शनो के परिणाम स्वरूप कई देशों के शासकों को सत्ता की गद्दी से हटने पर मजबूर होना पड़ा। बहरीन, सीरिया, अल्जीरिया, ईरक, सुडान, कुवैत, मोरक्को, इजरायल में भारी जनविरोध हुए, तो वही मौरितानिया, ओमान, सऊदी अरब, पश्चिमी सहारा तथा पलीस्तिन भी इससे अछूते न रहे।