Monday, October 10, 2016

फ्री की आदत वाले हम भारतीय : भाग 2

ये तो बात रही मात्र जियो सिम की लेकिन फ्री की पाने की और फ्री की खाने की इस आदत ने हमारे देश समाज का कितना नुकसान किया है और कर रही हैं इसका उदाहरण हम आये दिन देखते ही हैं. राजनीति में तो इसका दुरूपयोग भरपूर होता ही है, विभिन्न कंपनियां/संस्थान भी फ्री का लालच देकर हमारी अर्थव्यवस्था को अच्छी खासी चपत लगाती हैं.

राजनीति की बात करें तो आजकल के समाचारों से उत्तर प्रदेश का ताजा उदाहरण ध्यान में आता है. राज्य में चुनावी माहौल है. ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव में जीतने के बाद फ्री देने की घोषणाओं का दौर जारी है. समाजवादी पार्टी ने चुनाव में दुबारा जीतने के बाद स्मार्टफोन देने का वादा किया है. इससे पहले 2012 में सपा लैपटॉप देने के वादे के साथ सत्ता में आई थी. सपा सरकार ने लैपटॉप बांटे भी और अभी पिछले माह नए अपग्रेड वर्जन के महंगे लैपटॉप भी बांटे हैं. बहुजन समाजवादी पार्टी ने सब शर्म लिहाज को परे रख चुनाव के बाद नकद ही देने का वादा कर डाला. दक्षिण भारत में चुनावों में नकद रुपयों का बांटा जाना आम बात है. तमिलनाडु में सुश्री जयललिता द्वारा विभिन्न मुफ्त योजनायें हम सबको मालूम ही हैं.


क्या लैपटॉप मिल जाने से या स्मार्टफोन हाथ में आ जाने से लोग भी स्मार्ट हो जायेंगे ? क्या राजनेताओं द्वारा कुछ रु की नकद भीख से लोगों का हमेशा के लिए पेट भर पायेगा, क्या उन्हें बेहतर शिक्षा, रोजगार, आवास, अन्य नागरिक सुविधाएँ उपलब्ध हो पाएंगी. क्या हमारे बच्चों का भविष्य संवर पायेगा. क्या आमजन को इससे बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो सकेगी. वास्तव में इन मुद्दों का उन योजनाओं से जरा भी सरोकार नहीं है. राजनीतिक दलों द्वारा फ्री के छलावे में आकर हम उन्हें सत्ता सौंप देते हैं और फिर वो कर के रूप में जनता द्वारा जमा पैसे को ही अपनी उपलब्धि, कृपा, एहसान दिखाकर अपने वोट बैंक में वो धन लुटाते हैं.

इस सबका परिणाम यह होता है कि गाँव, शहर, राज्य सभी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं. वास्तव में नेता कभी भी ये नहीं चाहेंगे कि लोग शिक्षित, समझदार, आत्मनिर्भर, विचारवान हो जाएँ क्योंकि गर ऐसा हो गया तो वो सिर्फ फ्री का झुनझुना दिखाकर अपनी राजनीतिक रोटियां नहीं सेंक सकेंगे. लेकिन ये दुखद है कि पढ़े लिखे होने के बावजूद भी हम समझदार और विचारवान होने को तैयार नहीं हैं. हम इस फ्री के झुनझुने को सहर्ष स्वीकार करना चाहते हैं.

काफी समय पूर्व एक बार जापान  के प्रधानमंत्री भारत दौरे पर आये थे. उस से उन्होंने एक कड़वी लेकिन सच्ची बात कही थी. उन्होंने कहा था, "जापान में इतने करोड़ नागरिक (जापान की तत्कालीन जनसँख्या) निवास करते हैं जबकि भारत में इतने करोड़ लोग (भारत की तत्कालीन जनसँख्या) निवास करते हैं". जी हाँ अभी भी हम नागरिक नहीं बान पाये हैं, हम अभी भी लोग, भीड़ या number of heads ही हैं. हमने अब तक अपने वोट की ताकत और कीमत को नहीं पहचाना है.

लेकिन अब दुनिया 21वीं सदी के दो दशक पूरे करने के करीब है. हम सबके प्रिय भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय कलाम साहब समेत तमाम विद्वानों, वैज्ञानिकों, विचारकों ने कहा है कि यह सदी भारत की सदी है. क्या ऐसे ही हम इसे अपनी सदी बनायेंगे. नहीं, हम सबको स्मार्टफोन से आगे बढ़के स्मार्ट नागरिक और एक स्मार्ट व्यक्ति भी बनना होगा. न सिर्फ खुद के लिए बल्कि अपने परिवार, अड़ोस-पड़ोस, देश, समाज और सम्पूर्ण विश्व के लिए हमें एक स्मार्ट व्यक्ति बनना होगा और यही हमारी नियति है.