Saturday, December 18, 2010

वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी

लगभग आधी रात हो रही है और इस वक़्त सुदर्शन फ़ाकिर साहब का एक गीत याद आ रहा है --- वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी ! फ़ाकिर साहब वो थे जिन्होंने जगजीत सिंह को जगजीत सिंह बनाया !
खैर   फिलहाल तो ये गीत पेश है -- आनंद लीजिये 


 ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ।
मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्‍ती वो बारिश का पानी ।।

मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी,
वो नानी की बातों में परियों का डेरा,
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा,
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,

दीप


"दीप प्रज्ज्वलित जब होता है,
                    अन्धकार चहुँ दिश मिटता है !
 मन का दीपक तब जलता है,
                    जीवन उज्जवल हो उठता है !!"