Sunday, June 26, 2011

युवा होने को सिद्ध कर दो

हे युवक ! क्यों सोये पड़े हो तुम,

"उत्तिष्ठत जागृत प्राप्य वरान निबोधत"
यह मंत्र तुम्हारे लिए ही बना है.
उठो चरितार्थ करो इन शब्दों को,
युवा होने को सिद्ध कर दो.

इतिहास गवाह है कि युवाओं ने ही,
बदले हैं इतिहास और भूगोल.
जागो और धार को मोड़ दो विपरीत दिशा में.
छिन्न-भिन्न कर दो उन मान्यताओं को,
समाज जिनके पाश में फंसा हुआ है

इस गणतंत्र को ऐसे ही मत जाने दो
एहसास करा दो कि 6 दशक बाद,
आज हम गणतंत्र को गणतंत्र बनाकर दिखायेंगे,
अपने युवा होने का परचम दुनिया में लहरायेंगे. 

(26 जनवरी 2011 को लिखी गयी मेरी पहली कविता)

5 comments:

  1. बहुत खूब राम भाई....

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  2. Thanks Kailash, mai kavi nhi hu lekin koshish ki..

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  3. Hello:Ramender,

    bhai apki iss kavita ka topic or bhasha muje kafi achi lagi kyoki yuva hi to hai jo badlav ka ghotak hai yuva shakti hi kisi desh ki takt kehlati hai jis desh k yuva jagrit nhi hai wo desh kbi sarv shaktimaan nhi ban sakta."YUVA" ko ulta kardo to "VAYU" ban jata hai or hum sab jante hai ki vayu bin ek pal ki kakpna karn bhemani hai usi trah se yuva shakti bina bhi kisi bhi desh ki ayu lambi ni ho sakti.

    FROM:MANPREET SINGH

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