Sunday, June 26, 2011

युवा होने को सिद्ध कर दो

हे युवक ! क्यों सोये पड़े हो तुम,

"उत्तिष्ठत जागृत प्राप्य वरान निबोधत"
यह मंत्र तुम्हारे लिए ही बना है.
उठो चरितार्थ करो इन शब्दों को,
युवा होने को सिद्ध कर दो.

इतिहास गवाह है कि युवाओं ने ही,
बदले हैं इतिहास और भूगोल.
जागो और धार को मोड़ दो विपरीत दिशा में.
छिन्न-भिन्न कर दो उन मान्यताओं को,
समाज जिनके पाश में फंसा हुआ है

इस गणतंत्र को ऐसे ही मत जाने दो
एहसास करा दो कि 6 दशक बाद,
आज हम गणतंत्र को गणतंत्र बनाकर दिखायेंगे,
अपने युवा होने का परचम दुनिया में लहरायेंगे. 

(26 जनवरी 2011 को लिखी गयी मेरी पहली कविता)