Wednesday, October 27, 2010

मानवाधिकार विषय को न्यायसंगत करने की आवश्यकता


हमारे देश में मानव अधिकारों का बहुत ध्यान रखा जाता है, हां ये अलग बात है कि यहाँ मानव का उतना ध्यान कोई नहीं रखता। देश के मानवाधिकारवादी कार्यकर्ता अत्यन्त सक्रिय रहते है। कोई आतंकवादी घटना हो या फिर कोई किसी का सताया हुआ हो, पुलिस ने परेशान किया हो या किसी स्कूल महाविद्यालय की घट्ना हो, हर जगह ये मानवाधिकारवादी कार्यकता आपको मिल जायेंगे। फर्क सिर्फ इतना है कि ये पीडित कि मदद कम पीडा देने वाले की मदद ज्यादा करते हैं। अब कसाब का ही उदाहरण लीजिये, वो मानव है उसको मानव अधिकार मिले हुए है, इसलिये जेल में उसको सब सुविधा दी जाय, उस पर कोर्ट में ट्रायल हो, उसे वकील मिले आदि ! उसकी बदतमीजी हद पार करती जा रही है ! लेकिन हम उसे सजा देकर आतंकियों को शख्त सन्देश देने के बजे उसकी सुरक्षा पर करोड़ों फूँक रहें हैं ! अब उसने कुछ लोगों की हत्या कर दी जिसे पूरी दुनिया ने देखा तो क्या हो गया। चूँकि वो एक आतंकवादी है इसलिये उसके मानव अधिकार है, लेकिन जिन लोगों की उसने हत्या की शायद वो लोग मानव नहीं थे इसलिए उनका कोई मानवाधिकार नहीं था !

करोलबाग में सोनू नाम के 15 साल के एक लडके की हत्या एक भिखारी ने मात्र एक कम्बल के लिये कर दी। अपनी माँ का एकलौता सहारा भीमा की मौत ठंड से हो गई क्योंकि
एमसीडी ने वहाँ का रैन बसेरा तोड दिया, उन्हें कामनवेल्थ गेम्स में बाहर से आने वाले अतिथियों के लिये शहर को सुन्दर बनाना था। लेकिन भीमा और सोनू का कोई मानव अधिकार नहीं था!

कुछ समय पहले बीते कुंभ के मेले की घटना ही ले लीजिये ! वहाँ कश्मीर से भी कुछ लोग अपना सामान बेचने आये हैं। जब वहाँ के लोगों ने किसी कारण से उन्हें भाग जाने को कहा तो तुरन्त मानवाधिकारी जाग गये लेकिन आज से बीस साल पहले कश्मीर से पन्डितों को उनके अपने घरों से जब भगाया था उस वक्त किसी मानवाधिकारवादी के पास समय नहीं था।

मानवाधिकार का विषय आज पूरी तरह एकतरफा सा दिखता है और जिस मानवाधिकार की संकल्पना न्याय पर आधारित है वह अन्याय का पक्ष लेता दिखता है।

पिछले वर्ष में इंडियन मीडिया फोरम और साउथ एशिया फोरम द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का विषय था ”मानव अधिकार : एक नये नजरिये से”। अमेरिका स्थित मानवाधिकार संगठन फोर्सफील्ड के अध्यक्ष और प्रसिध्द अमेरिकी पत्रकार डा रिचर्ड बेंकिन इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता थे। कार्यक्रम मे साउथ एशिया फोरम के अध्यक्ष श्री अमिताभ त्रिपाठी और इंडियन मीडिया फोरम के अध्यक्ष श्री अरुण कुमार भी उपस्थित थे। इसमें १५ से अधिक संस्थानों के तक़रीबन २०० मीडिया छात्र उपस्थित थे !डॉ बेंकिं ने कहा कि आज विश्व में धर्म विशेष के साथ भी मानवाधिकार को जोड़ दिया गया है !विभिन्न धर्मों के सम्बन्ध में  मानव अधिकारों के लिये तो सयुंक्त राष्ट्र संघ तुरंत प्रस्ताव पास कर देता है लेकिन कश्मीर में, बांग्लादेश में, मलेशिया में हिन्दु लोगों के मानव अधिकरों के बारे में कोई बात नहीं करता, ऐसा क्यों ?

आज मानव अधिकारों का प्रयोग गैर सामाजिक तत्वों और देश विरोधी लोगों को कानूनी सहायता देने के लिये किया जा रहा है! क्या आज मानव अधिकारों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता नहीं है ? क्या आज मानवाधिकार विषय को न्यायसंगत करने की आवश्यकता नहीं है ? निसंदेह जब GLOBALISATION की बात होती हो, धर्म की गलत व्याख्या की जा रही हो, दुनिया में अपराध बुरी तरह बढ़ रहें हैं, ऐसे में मानवाधिकार जैसे महत्वपूर्ण विषय को गलत हाथों में नहीं जाने देना चाहिए !!
क्या आज मानवाधिकार विषय को न्यायसंगत करने की आवश्यकता नहीं है ?

2 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखा है. आपकी बातों का समर्थन..

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  2. भारतीय नागरिक धन्यवाद, समर्थन और प्रोत्साहन दोनों के लिए !! आजकल समर्थन भी बड़ी मुश्किल से मिलता है !

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