Saturday, February 13, 2016

Bhagat Singh aur Velentine Day Part 1

भगत सिंह और वेलेंटाइन डे भाग-एक

आज एक बार फिर मुझे इसी मुद्दे पर अपने इस ब्लॉग पर लिखना पड़ रहा है। 15 फरवरी 2010 को अपने पुराने ब्लॉग पर (अपनी तकनीकी कमजोरी के कारण जिसे मैं खो चुका हूँ) इस विषय पर मैंने लिखा था। आज उसी पोस्ट को सम्पादित करके पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ।

मामला यूँ है कि कल से व्हाट्सप्प पर संदेश आ रहे हैं - कुछ याद उन्हें भी कर लो, वेलेंटाइन डे तो याद है पर हमारे शहीद नहीं, आज श्रद्धांजलि दिवस या भगत सिंह का शहीदी दिवस है इत्यादि इत्यादि। ऐसे मेसेज देश भर में खूब भेजे जा रहे हैं। लोग वेलेंटाइन डे के विरोध के जोश-ओ-खरोश में खुद ये भूल गए कि भगत सिंह को फांसी कब हुई थी और मेसेज से दूसरों को ताना मार रहे हैं । बहुत से देशभक्त भाई 14 फरवरी को भगत सिंह और साथियों को फांसी चढ़ा रहे हैं या इसी दिन उन्हें सजा दिलवा रहे हैं जबकि वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। काफी हास्यास्पद है। अब ये मेसेज पहली बार किसने भेजा ये तो मालूम नहीं पर थोड़ी खोजबीन जो मैंने की वो बड़ी मजेदार है।

ऐसे मेसेज पहली बार 12 फरवरी 2010 में भेजे गए थे, उसके अगले दिन से ये बहुतायत में भेजे गए और तबसे हर वर्ष फरवरी में यही होता है। हुआ यूँ कि 13 फरवरी की शाम को स्टार न्यूज़ चैनल (अब एबीपी न्यूज़) पर वेलेंटाइन डे को लेकर एक टॉक शो चल रहा था जिसे प्रसिद्द पत्रकार दीपक चौरसिया जी होस्ट कर रहे थे।

इसी शो में मुंबई से आशुतोष नाम के एक व्यक्ति का फोनो लिया गया जिन्होंने कहा कि आज भगत सिंह, और उनके साथियों को फांसी दी गई थी लोगों को ये याद नहीं है। इसके बाद इस मेसेज की संख्या में वृद्धि होती गई। आशुतोष के एक मित्र से मेरी बात हुई तो उसने बताया कि आशुतोष
ने तो उस मेसेज को पढ़ने के बाद ये कहा था और उनका ये मतलब था कि लोग ये भूल गए कि भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी हुई थी और लोग 13 फरवरी को उन्हें फांसी पर लटका रहे हैं।

लेकिन सबसे दुःखद ये है कि वहां बैठे किसी व्यक्ति ने, जिसमें चौरसिया जी भी थे, इसे स्पष्ट नहीं किया जिससे भ्रम की स्थिति बनी। लोगों ने भी अपनी बुद्धि-विवेक का इस्तेमाल नहीं किया और ये मेसेज मिलते ही तुरंत अपना देशप्रेम प्रकट करते हुए आगे दस लोगों को फॉरवर्ड कर दिया। 

क्या हमें कुछ ऐसी महत्वपूर्ण तिथियाँ भी नहीं याद रहतीं या नहीं याद रखनी चाहिए। हर नागरिक के मौलिक अधिकारों के साथ उसके कुछ मौलिक कर्त्तव्य भी हैं लेकिन आज हमें उसका भान नहीं है। भारतीय संविधान के भाग 4क में अनुच्छेद 51क के तहत मूल कर्त्तव्यों  का वर्णन है। इसमें लिखा है :-
भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि  वह -
  1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज औ राष्ट्र गान का आदर करे;
  2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्रदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;


लेकिन क्या हम ऐसा कर रहे हैं ? क्या हम ऐसे ही अपने शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों, महापुरुषों, प्रेरणा पुरुषों को भूलते रहेंगे ? तो फिर क्या बचेगा हमारे पास ? यदि एक बार आत्म सम्मान आत्मगौरव चला गया तो तमाम भौतिक साधन भी हमारा विकास नहीं कर सकेंगे।
खैर इस भाग में इतना ही, ये तो हुई थोड़ी सतही चर्चा, अगले भाग में इस विषय से संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों पर लिखूंगा और उसमें ये जानकारी भी होगी कि आखिर 14 फरवरी से भगत सिंह और साथियों को कैसे जोड़ दिया गया।

पुराने ब्लॉग की पोस्ट का लिंक है- भगत सिंह को 13 फरवरी को फाँसी         

  

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