Sunday, August 14, 2016

Salute to you Irom

इरोम तुम्हारे जज़्बे को सलाम 

जेल की सेल में तब्दील कर दिए गए मणिपुर के जवाहरलाल नेहरू अस्पताल का वह कमरा दुनिया भर के पत्रकारों, नागरिक अधिकारों के पैरोकारों और एक्टिविस्ट के आकर्षण का एक केंद्र था लेकिन अब वहां का माहौल काफी बदला-बदला सा है. यह कमरा सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (अफस्पा) को समाप्त करने को लेकर पिछले 16  वर्षों से अनशन पर बैठी 44 वर्षीय इरोम चानू शर्मीला का लगभग स्थायी निवास बन चुका था.  उनके नाक में लगी नली और उनके खुले बाल शांतिपूर्वक सतत संघर्ष का एक प्रतीक बन चुके थे.


मणिपुर की राजधानी इंफाल से 15-16 किलोमीटर दूर मालोम में एक बस स्टैंड पर 02 नवंबर, 2000 को असम  राइफल्स के जवानों द्वारा 10 लोगों की कथित हत्या की गई थी. इस घटना से अत्यंत व्यथित होकर इरोम तब उसी बस स्टैंड के पास जाकर अनशन पर बैठ गई थीं. उनकी मांग थी कि अफस्पा को मणिपुर से समाप्त किया जाये जो सशस्त्र बलों को असीमित अधिकार देता है
जिसका परिणाम कभी-कभी ऐसी घटनाओं या तथाकथित हत्याकांड के रूप में देखने को मिलता है. तब से लेकर अब तक ब्रम्हपुत्र  में लाखों लीटर पानी बह चुका है. लेकिन 16 वर्षों के सतत संघर्ष के दौरान इरोम लगातार अपनी मांग पर डटी रहीं. इरोम जीते जी किवंदती बन गई हैं और अब वो मणिपुर कि आयरन लेडी के नाम से दुनिया में जानी जाती हैं. उनकी चट्टानी इच्छाशक्ति को देश और दुनिया सलाम करती है.

हम इरोम के विचार और उनकी मांगों से सहमत या असहमत हो सकते हैं लेकिन उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का लोहा तो मानना ही होगा. 16 साल से उनकी जीभ ने खाना और पानी का स्वाद नहीं जाना है. अदालत के आदेश से उन्हें आत्महत्या के प्रयास के आरोप में पुलिस निगरानी में रखा जाता था. 

हर 15 दिन में उन्हें कोर्ट ले जाकर न्यायाधीश के समक्ष पेश किया जाता था. न्यायाधीश उनसे अनशन तोड़ने को लेकर प्रश्न पूछते थे और 16 वर्षों से इरोम उन्हें नकारात्मक जवाब दे रही थीं. नतीजतन, अदालत उन्हें फिर से न्यायिक हिरासत में भेज देती थी. साल में 1 दिन के लिए उन्हें रिहा किया जाता था क्योंकि आत्महत्या के प्रयास के आरोप में 1 साल से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता. अपना अनशन शुरू करते ही शर्मीला ने अपना घर छोड़ दिया था और तभी से वह अपने घर नहीं गई हैं. उन्होंने 16 सालों से अपने बाल नहीं बांधे हैं, नाखून नहीं काटे हैं और अनशन ख़त्म करने के बाद भी ऐसा न करने के अपने फैसले पर कायम हैं. इतने सालों से कुछ न खाने के कारण उनका शरीर इतना कमजोर हो गया है कि  नाखून अपने आप टूट कर गिर जाते हैं. लेकिन अब देश की आज़ादी की 70वीं सालगिरह से ठीक पहले 09 अगस्त को उन्होंने अपना अनशन ख़त्म कर दिया है.

हालाँकि शर्मीला ने कहा है कि वह अपना तरीका और रणनीति बदल रही हैं लेकिन उनका संघर्ष अब भी जारी है. अब वह चुनाव लड़कर विधायिका का हिस्सा बनना चाहती है और मणिपुर की मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं ताकि वहां की गन्दी राजनीति को बदल सकें. अनशन समाप्त करने के बाद उनके अपनों द्वारा उनके साथ किये गए व्यवहार के कारण अब शायद समाज भी उन्हें गन्दा और भ्रष्ट प्रतीत हो किन्तु अब उन्हें तमाम नई चुनौतियों और नए सवालों एवं समस्याओं से गुजरना होगा.

वह मणिपुर की सीएम बनेंगी या नहीं ये तो वक़्त ही बताएगा लेकिन विधायिका के रास्ते चलकर शायद वे समझें कि सरकार ने वहां और जम्मू-कश्मीर समेत भारत के लगभग 11 राज्यों में अफस्पा क्यों लगाया हुआ है या कहा जाये कि सरकार को अफस्पा क्यों लगाना पड़ा है. खैर जो भी, सहमति या असहमति अपनी जगह है, सही या गलत एक ओर है. इरोम आपके जज्बे और विजिगीषु वृत्ति को सलाम.

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